वट सावित्री व्रत पूजा और उसका महत्व हिंदू धर्म में।

दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना।

वट सावित्री व्रत का महत्व:
वट सावित्री व्रत को सावित्री देवी से जोड़ा गया है। मान्यता है कि सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं, इस व्रत में महिलाएं सावित्री के समान अपने पति की दीर्घायु की कामना देवताओं से करती हैं, ताकि उनके पति को सुख समृद्धि अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त हो सके। जिन दंपत्तियों की संतान नहीं है। वह संतान प्राप्ति की इच्छा से ये व्रत रखती हैं। साथ ही प्रकृति में बरगद के वृक्ष की आयु सबसे अधिक है। इसलिए बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती हैं। मान्यता अनुसार बरगद के वृक्ष में सभी देवी देवता वास करते हैं। वट वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु व टहनियों में भगवान शंकर का निवास होता है। इस पेड़ के नीचे की ओर लटकती शाखाएं देवी सावित्री का प्रतीक मानी जाती हैं।

आयुर्वेद में वट वृक्ष का महात्म
Note (विशेष) – “आर्युवेद शास्त्र” के अनुसार वट वृक्ष में कई सारे औषधीय गुण विद्यमान होते है जो स्त्री इसका वैद्यकीय सलाह से औषध रूप में सेवन करती है उसकी कई सारी तकलीफे मासिक संबंधी, रक्त स्राव से संबंधी,संतान से संबंधी,संतान प्राप्ति के लिए, गर्भाशय में गाठें होकर अत्याधिक रक्त स्राव होना आदि सभी समस्याओं में इसका लाभ मिल सकता है इसलिए इसकी पूजा करने के साथ ही साथ यह स्त्रियों के लिए विशेष रूप से एक “कल्प वृक्ष” के ही समान है जो सारे तकलीफों का निवारण करता है ।इसलिए आज ही अपने वैद्य से इसके बारे में जानकारी ले और इस कल्पवृक्ष से अपने व अपने परिवार के स्वस्थ के लिए प्रार्थना करें।

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